चातुर्मास विशेष:शहर से तीन किमी दूर पांडव खोह पर आज भी है पांडवों का स्थापित शिवलिंग

द्वापरयुग में महाभारत के कौरव-पांडव युद्ध से पहले पांचों पांडव भाइयों ने मां कुंती के साथ शाजापुर में चातुर्मास की अवधि बिताई और शिव आराधना की थी । शहर से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर लालघाटी और चीलर नदी के बीच यह स्थान पांडव खोह के नाम से जाना जाता है। शिवजी की आराधना के लिए पांडवों ने यहां शिवलिंग की स्थापना की थी।

प्राकृतिक वातावरण से घिरा यह स्थान अब भी शांतिवन की तरह सुगंधित पुष्पों से महकता है। पहाड़ियों से घिरे शाजापुर शहर के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का प्रमाण यह स्थान शहर के पर्यटन का महत्व बताने के लिए काफी है लेकिन जिम्मेदारों की अनदेखी से शहर की तरफ पर्यटक आकर्षित नहीं हो रहे हैं, जबकि देशभर के पर्यटक इस ऐतिहासिक धरोहर से महज दो किलोमीटर की दूरी से गुजरते हैं क्याेंकि पांडव खोह से केवल दो किलोमीटर दूर आगर-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग है।

देशभर से गुजरने वाले हजारों लोगों को पता भी नहीं लगता कि शहर से होकर गुजर रहे हैं। जैसा कि नाम से ही इस स्थान की संरचना का अनुमान लगाया जा सकता है। पांडव खोह इसलिए बाेला जाता है कि सामान्य भूमि से यह स्थान काफी नीचे की तरफ है और यह प्रतीत होता है कि पांडवों ने अज्ञातवास में खुद को छुपाने के लिए यहां जमीन के अंदर तक खुदाई की होगी। दूसरे किनारे पर चीलर नदी बहती है।

इस स्थान का चुनाव इसीलिए किया होगा ताकि जीवन के लिए जरूरी पानी की कमी ना पड़े। शिवलिंग पुराने पत्थरों से बनाया गया था। कालांतर में संतों ने यहां डेरा डाला और शिवलिंग की प्रतिमा को और बेहतर आकार दे दिया। वर्तमान में यहां लक्ष्मण पुरी महाराज निवास करते हैं, जो जूना अखाड़ा के संत हैं।

पांडवों ने जिले में चार जगह बिताया था अज्ञातवास

पांडव खोह के अलावा मक्सी के झरनेश्वर, करेड़ी और खोखराखेड़ी में भी पांडवों के आगमन के प्रमाण मिलते हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि ये किवदंती नहीं है अपितु प्रमाणित तथ्य हैं कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने शाजापुर में चातुर्मास का समय बिताया था। 5 बीघा के क्षेत्र में कई प्रजातियों के पक्षियों का बसेरा है। नियमित आने वाले पवन विश्वकर्मा एवं बबलू मोहिते ने कहा यहां शिवजी की आराधना की सुखद अनुभूति होती है।

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